जटाओं से है जिनके जलप्रवाह माते गंग का।
गले में जिनके सज रहा है हार विष भुजंग का।
डमड्ड डमड्ड डमड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
सजल लहर विहोग गई चपल चपल ललाट पर।
धधक रहा हैं स्वर्ण सा अनल सकल ललाट पर।
ललाट से ही अर्द्ध चंद्र, कह उठा शिव: शिवम् ॥
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
जो नंन्दनी के वंदनीय, नंन्दनी स्वरूप है।
वे तीन लोक के पिता, स्वरूप एक रूप है।
कृपालु ऐसे है के चित्त जप रहा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
समस्त प्राणियों में उनकी ही कृपाऐ बह रही।
भुजंग देवता के शीर्ष मणि प्रभाए कह रही।
दशा दशा शिव: शिवम् दिशा दिशा शिव: शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
वे देव देवताओं के अनादि से परे हुए।
समस्त उनके द्रोण पुष्प शीर्श पर चढ़े हुए।
विपन्न कामनाओं की है, सम्पदा शिव: शिवम् ।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
जो इन्द्र देवता का भी घमंड का दमन करें।
जो कामदेव की समस्त कामना दहन करें।
वही समस्त सिद्धियाँ, वही महा शिव: शिवम् ।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
विशाल भाल पट्टिका पे अग्नि वे जलाये है।
वे भस्म काम देवता का शीश पर लगाए है।
है नंदिनी की रुप की तरल चटा शिव: शिवम् ।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
नवीन श्याम मेघ कण्ड भर सवार कर चले ।
वही तो भाल चन्द्र नाग गंग शीश कर चले।
सकल जगत का भार भी चले उठा शिव: शिवम् ।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
है नील कंठ सौम्य नील पंकजा समान है।
मनुष्य क्या वे देवता के दंड का विधान है।
समक्ष उनके काल स्वयं भज रहा शिवःशिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
सदैव सर्व मंगला,कला के शीर्ष देवता।
वही विनाश काल है, वही जनक जनन सदा।
नमन कृतज्ञ प्राण यह जपे सदा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
प्रचंड तांडव: प्रभा: स्वयं विलीन देखकर ।
की नृत्य देवता को नृत्य में प्रलिन देखकर।
मृदंग मुग्ध भावना से कह उठा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
समक्ष उनके देव जन का एक ही विधान है।
समग्रता में उनके दृष्टि एक ही समान है।
नमन नमन समानता के देवता शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
मात्र एक कामना है मात्रा एक बंदना।
उन्ही के दर्शनों से पूर्ण हो सभी उपासना।
न जाने कब करेंगे हम पे यह कृपा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
चरण को जिनके अप्सराओं पर पे राग झूमते।
शरण में जिनके इंद्रलोक और देव झूमते।
अनादि से उमंग के परंपरा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
प्रचंड अग्नि से समस्त पाप कर्म भस्म कर।
महान अष्ट सिद्धि से सभी अधर्म नष्ट कर।
विजय की मूल मंत्र की है साधना शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
वही अघोर नाथ है उन से पूर्ण शुद्धता।
निहित उन्ही के जाप में मनुष्यता विशुद्धता।
समस्त मोह नाश के हैं देवता शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्
पूजा वसान ध्यान से करें जो पाठ स्तोत्र का।
मुकुल बने वही मनुज परम विशिष्ट गोत्र का।
उसी को देते हैं समस्त संपदा शिव: शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा धरा शिव: शिवम
वे शेष है,अशेष है,प्रशेष है,विशेष है।
जो उनको जैसा धार ले वो उसके जैसा वेष है।
वे नेत्र सूर्य देवता का चंद्रमा का भाल है।
विलय भी वे प्रलय भी वे,अकाल,महाकाल है॥
उसी के नाथ हो गये,जो उनके साथ हो लिया।
वही के हो गये है वे जहाँ सुना शिवः शिवम्।
डमड्ड डमड्ड डमड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम्